
दोस्तो इस दुनिया में कई रहस्य छुपे हुए हैं लेकिन कुछ रहस्य ऐसे जिन्हें जानने की हिम्मत केवल चन्द लोग ही कर सकते है,क्या आपने कभी सोचा कि वो लोग कौन है जो रात के अंधेरे में श्मशान की खामोशी में डूबे रहते हैं जिनकी साधना रास्ता भय और डर से भरा हुआ है पर फिर भी वो उस पथ पर चलना नहीं छोड़ते।
अघोरी साधु कहाँ रहते हैं,
हम बात कर रहे हैं अघोरियों की अघोरी – अघोरी शब्द सुनते ही एक डरावनी छवी आंखों के सामने आती है लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि ये अघोरी वास्तव में कौन हैं,क्या ये सच में तंत्र – मंत्र के साधक हैं या फिर इन्हें अपने रहस्यों को छुपाने का हुनर आता है अघोरियों का नाम सुनते ही हमारे मन में डर ओर जिज्ञासा दोनों पैदा हो जाती है। अघोरी साधु सांसारिक दुनिया से दूर श्मशान एवं रहस्मय जगहों पर रहते हैं ओर तपस्या करते है ये केवल 12 वर्ष तक ही नहीं बल्कि सारी उम्र तपस्या में लीन रहते हे अघोरी साधु अघोर पंथ पर चलते हैं अघोर पंथ एक गुढ़ परंपरा होती है इनमें जीवन ओर मृत्यु को समझने की क्षमता होती है यह उनके वैराग्य जीवन को दर्शाते हे ये अघोरी काले रंग के वस्त्र पहनते है ओर कई बाबा तो वस्त्र भी नहीं पहनते अघोरी साधु सनातनी होते है और यह धर्म का प्रतीक होते है या बाबा धर्म के लिए ही तपस्या करते है ये बाबा अखाड़ों में संगठित रह कर इक टोली में रहते है और ये साधु अपने शरीर पर भस्मी लगाते हे ये उनकी तपस्या का एक अहम हिस्सा होता है
क्या आपने कभी सोचा है कि अघोरी साधु बनते कैसे हैं अघोरी साधु शवों का और जानबरो का कच्चा मांस क्यों खाते है, मृत के साथ शारीरिक संबंध क्यों बनाते है, ये कड़ी तपस्या क्यों करते हैं,ओर किसकी तपस्या करते हैं ओर क्यों, ये श्मशान में रहकर ही तपस्या क्यों करते है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अघोरी साधुओं का अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है।
आज हम आपको सच्चे अघोरी की पहचान से लेकर उनके इस रहस्यमयी जीवन को लेकर सभी पहलुओं पर ले चलेंगे। जिससे जानकार आप हैरान रह जाएंगे।
तो जानिए अघोरियों का जीवन,
अघोरी साधु बनने के लिए सामान्य जीवन का त्याग करना पड़ता है अपने नियमों को बदलना पड़ता है हर वो चीज अपनानी पड़ती है जो सीधा परमात्मा से जोड़े रखती है अघोरी बनने के लिए व्यक्ति को अपना घर,परिवार ओर समाज यह तक कि संसार से खुद का भी परित्याग कर देते है खुद का अंतिम संस्कार भी कर देते हैं,खुदको मृत घोषित कर देते है,खुद के पिंड दान कर देते हैं। दुनिया की मोह,माया से दूर रहते हैं अघोरी साधु एक ऐसा नाम है जो अपने आप में ही एक रहस्य ओर विचित्रता को समेटे हुए है, इनके जीवन का हर पहलू समाज की परंपराओं से परे है और नियमों से बिलकुल अलग है।
क्या करते हैं ये अघोरी बाबा
श्मशान – जहां आम लोग जाने से भी डरते हैं वहां अघोरी श्मशान में रहकर घोर तपस्या,साधना करते हैं मृत्यु ओर आत्मा के गुण रहस्यों को जानने के लिए साधना करते हैं। श्मशान में जले हुए मुर्दे की राख को भस्मी मानकर अपने बदन पर लपेटते हैं ओर उस राख का तिलक भी करते हैं शवों की हड्डियों का भी प्रयोग तंत्र विद्या में किया करते है मुंडो की माला अपने गले में पहनते है ये अघोरी अन्य साधु बाबा की तुलना से भिन्न होते है, इनकी आंखों में इक अजीव प्रकार की लालिमा होती है इनकी आंखे अक्सर लाल रंग की होती हैं जो दर्शाती है कि अघोरी बाबा गुस्से में हैं कहा जाता हे कि अघोरी बाबा हठीले,जिद्दी होते हैं जो भी इन्होंने ठान लिया उसे पूरा ही करते हैं चाहे फिर इन्हें कितनी ही घोर कड़ी से कड़ी तपस्या क्यों न करनी पड़े।
क्या खाते है ये अघोरी
आपने अघोरी बाबाओं के बारे में सुना ही होगा ये अपने जीवन की दिनचर्या को कुछ अलग ही तरीके से बनाते हैं माना जाता हे कि अघोरी बाबा सामान्य साधु की तुलना से बहुत ही अलग होते हैं उनका खान पान भी अलग होता है ये अघोरी बाबा इंसानों के मांस से लेकर किसी भी जीव का मांस खाते हैं जो अन्य लोगों या अन्य साधुओं के लिए वर्जित हे,ये मदिरा, पान भी ग्रहण करते हैं
क्या अघोरी करते है ब्रह्मचर्य का पालन
नहीं कभी नहीं, अघोरी कभी नहीं करते ब्रह्मचर्य का पालन। क्योंकि किसी प्रकार का शारीरिक संबंध बनाना उनके लिए बेध हे,ये अघोरी श्मशान में जले हुए मृत शवों के साथ यौन संबंध बनाते हैं ओर यहाँ तक कि जीवित महिलाओं से भी शारीरिक संबंध बनाते हे यह संबंध जब बनाते हैं जब महिला रजस्वला धर्म में हो उसका प्रभाव साधना के लिए बहुत ही मजबूत कड़ी मानी जाती है अघोरी भाषा में कह सकते हैं यौन संबंध का मतलब होता है शिव ओर शक्ति की उपासना करना। उनका मानना हे कि इस क्रिया के दौरान उनका मन भगवान में लगा रहे ओर यह साधना का सबसे ऊंचा स्तर मन जाता है यह भी कहा जाता हे कि अघोरी ढोल मंजीरे साथ यौन संबंध बनाते हैं तब ये उनकी सबसे कठिन तपस्या मानी जाती हे यह भी कहा जाता है ये मिलन जो सीधा शिव की अत्पस्य में लीन होकर मोक्ष की तरफ जाता है। ये अघोरी शिव के पुजारी होने का दावा करते हैं श्वेताश्वतर उपनिषद में भगवान शिव को भी अघोरीनाथ कहा गया है।
ये अघोरी बाबा तपस्या कैसे करते हैं
इनकी तपस्या का मार्ग बहुत ही दुर्गम होता है कहा गया हे कि श्मशान की राख ओर गले में हड्डियों और मुंडो की माला, हाथों में मानव खोपड़ी और उनकी आंखों में वो तेज होता है और काले चोंगे लिपटे हुए ये अघोरी साधु किसी रहस्यमयी दुनिया के प्रतीक प्रतीत होते हैं यह अघोरी भगवान शिव ओर मां काली की आराधना करते हैं।इनकी पूजा तंत्र मंत्र से भरी होती है और ओर इनकी तपस्या बहुत ही कड़ी होती हे जिसे हर कोई नहीं कर सकता ये साधु हर वस्तु का त्याग कर देते हैं जो उनके या सामान्य लोगों के लिए जरूरी हो।
अघोरियों का परित्याग
कैसे : कैसे करते हे ये अपना परित्याग हम कहा जाता हे कि अघोरियों का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता लेकिन कहा जाता हे कि अघोरी अपना परित्याग मरने से पहले ही अपना अंतिम संस्कार कर देते हैं अपने हाथों से अपना पिंड दान भी कर देते हे और दुनिया के सारे मोहमया का त्याग कर देते है माना जाता हैं की म्रत्यु के बाद इनके शव को गंगा में प्रवाहित किया जाता है परन्तु जलाया नहीं जाता हैं ऐसा भी होता हैं की अघोरी बाबा की म्रत्यु के बाद 40 दिनों तक शव को उल्टा रखा जाता हैं वह इसलिए रखा जाता है क्योकि उनके शरीर पर जीव जंतु पड़ जाये और इनके आधे शरीर को गंगा जी में प्रवाहित किया जाता है और आधे शरीर को कुछ अघोरी अपने पास अर्थात मुंडी को अपनी तंत्र विद्या में इस्तेमाल करते हैं फिर उस खोफड़ी को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं |
यहाँ थी अधोरी साधुओं की जीवन गाथा