
अभिनेत्री ममता कुलकर्णी का फ़िल्मी दुनिया से महामंडलेश्वर तक सफ़र ?
ममता कुलकर्णी, जो 90 के दशक की एक प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेत्री थीं, अपने करियर और व्यक्तिगत जीवन में उतार-चढ़ाव के लिए जानी जाती हैं। उनके किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बनने की खबर ने कई लोगों को हैरान कर दिया, क्योंकि यह एक असामान्य और साहसिक कदम था। ममता कुलकर्णी ने गृहस्थ जीवन से संन्यास लेकर किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर की पदवी प्राप्त की है। प्रयागराज में संगम तट पर पिंडदान करने के बाद, उन्हें दीक्षा दी गई और अब वे ‘यमाई ममता नंद गिरि’ के नाम से जानी जाएंगी।
ममता कुलकर्णी का फिल्मी करियर
ममता कुलकर्णी ने 90 के दशक में कई हिट फिल्मों में काम किया, जैसे करण अर्जुन, सबसे बड़ा खिलाड़ी, और आशिक आवारा। अपनी बोल्ड और ग्लैमरस छवि के कारण वह चर्चा में रहीं हालांकि, उनका करियर उतना लंबा नहीं चला, और धीरे-धीरे उन्होंने फिल्मों से दूरी बना ली। इसके बाद, ममता कई विवादों में फंसीं। उनका नाम ड्रग तस्करी के एक मामले से भी जुड़ा, जिसमें उनके पार्टनर विकी गोस्वामी का भी नाम आया। हालांकि, ममता ने इन आरोपों को हमेशा खारिज किया और कहा कि वह निर्दोष हैं।
आध्यात्मिकता की ओर झुकाव
फिल्मी करियर और विवादों से दूर होने के बाद, ममता कुलकर्णी ने आध्यात्मिकता की राह पकड़ ली। उन्होंने मीडिया में दावा किया कि वह पूरी तरह से साध्वी बन चुकी हैं और सांसारिक मोह-माया से मुक्त हो गई हैं। ममता ने कई बार अपने साक्षात्कारों में यह भी कहा कि वह अब पूरी तरह भगवान के प्रति समर्पित हैं।
किन्नर अखाड़ा और महामंडलेश्वर की भूमिका
किन्नर अखाड़ा, 2015 में हरिद्वार कुंभ मेले के दौरान स्थापित हुआ था। इसका उद्देश्य किन्नर समुदाय को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाना और आध्यात्मिक मार्ग में उनका नेतृत्व करना है।
महामंडलेश्वर का पद अखाड़े में बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह धार्मिक और सामाजिक नेतृत्व का प्रतीक है। ममता कुलकर्णी को इस भूमिका में शामिल करना इस बात का संकेत हो सकता है कि अखाड़ा अपनी पहुंच और प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
किन्नर अखाड़े के महामंडलेश्वर बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताएं और मापदंड आवश्यक माने जाते हैं:
यह योग्यताएं भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के अनुसार होती हैं:
1. संत परंपरा से जुड़ाव:
– व्यक्ति का किन्नर अखाड़े की परंपराओं, नियमों और अनुशासन में पूर्ण समर्पण होना चाहिए।
– व्यक्ति को साधु-संत बनने की प्रक्रिया (दीक्षा) पूरी करनी होती है और वह सन्यास धर्म का पालन करता हो।
2. आध्यात्मिक ज्ञान:
– व्यक्ति को वेद, पुराण, शास्त्र और धार्मिक ग्रंथों का गहन अध्ययन और ज्ञान होना चाहिए।
– ध्यान, योग और भक्ति मार्ग में निपुणता होनी चाहिए।
3. समाज सेवा:
– महामंडलेश्वर बनने के लिए समाज सेवा और किन्नर समुदाय की उन्नति के लिए समर्पित होना अनिवार्य है।
– व्यक्ति को समाज में सकारात्मक भूमिका निभाने और धार्मिक कार्यों में भाग लेने का अनुभव होना चाहिए।
4. आचरण और अनुशासन:
– व्यक्ति का चरित्र उच्च स्तर का और अनुशासित होना चाहिए।
– अहिंसा, सत्य और त्याग जैसे गुणों को अपनाना और उनका पालन करना अनिवार्य है।
5. अखाड़े के सदस्यों की स्वीकृति:
– किन्नर अखाड़े के वरिष्ठ संतों और अन्य सदस्यों की सहमति आवश्यक होती है।
– किसी व्यक्ति को महामंडलेश्वर बनाने का निर्णय सामूहिक रूप से लिया जाता है।
6. समर्पण और नेतृत्व क्षमता:
– व्यक्ति में अखाड़े का नेतृत्व करने और उसकी परंपराओं को आगे बढ़ाने की क्षमता होनी चाहिए।
– धार्मिक आयोजनों और कुंभ मेलों जैसे बड़े आयोजनों में अखाड़े का प्रतिनिधित्व करने की योग्यता होनी चाहिए।
7. किन्नर समुदाय से संबंध:
– महामंडलेश्वर बनने के लिए व्यक्ति का किन्नर समुदाय का हिस्सा होना आवश्यक है, और उसे इस समुदाय के प्रति अपनी सेवा और समर्पण दिखाना चाहिए।
परिवार का त्याग करना होता है।
महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया
महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया में संन्यास ग्रहण करना, पिंडदान करना और दीक्षा लेना शामिल होता है। ममता कुलकर्णी ने इन सभी चरणों को पूरा किया, जिसके बाद उन्हें यह सम्मानित पद प्रदान किया गया।
ममता को विशेष मंत्रों से परिष्कृत रूद्राक्ष की माला पहनाई गई। लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के साथ पुरोहितों ने उन्हें शंख से दुग्ध स्नान कराया। उन्हें भगवा वस्त्र पहनाए गए। अखाड़े की धर्मध्वजा के नीचे उनका पट्टाभिषेक किया गया। इस दौरान लगातार मंत्रोच्चार चलता रहा। उन्हें 15 मालाएं पहनाई गईं। उसके बाद ममता ने किन्नर और जूना अखाड़े के संतों का आशीर्वाद लिया। इसके बाद किन्नर अखाड़े की प्रमुख लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने उन्हें महामंडलेश्वर घोषित किया।
ममता ने किन्नर अखाड़ा ही क्यों चुना?
ममता ने सनातन धर्म की दीक्षा जरूर ली थी लेकिन संन्यास महाकुंभ में आकर लिया है। महामंडलेश्वर बनाने के लिए किन्नर अखाड़े के नियम थोड़ा उदार हैं। महामंडलेश्वर बनने के बाद भी घर-परिवार और काम धंधे से जुड़े रह सकते हैं। 13 अखाड़ों की तरह कठिन साधना नहीं करनी पड़ती है।
महामंडलेश्वर पद के लिए ममता का चुनाव ही क्यों?
ममता कुलकर्णी को किन्नर अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाए जाने का निर्णय उनके आध्यात्मिक जीवन और समाज सेवा के प्रति उनकी निष्ठा के कारण लिया गया। किन्नर अखाड़ा, जो किन्नर समुदाय के धार्मिक और सामाजिक उत्थान के लिए काम करता है, महामंडलेश्वर के पद पर ऐसे व्यक्ति को चुनता है जो आध्यात्मिक दृष्टि से प्रबल हो, धर्म का पालन करता हो और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता रखता हो।
एक बातचीत में, लक्ष्मी नारायण (किन्नर अखाड़े की पहली महामंडलेश्वर )ने ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर नियुक्त किए जाने के बारे में खुलकर बात की और कहा, “किन्नर अखाड़ा ममता कुलकर्णी (पूर्व बॉलीवुड अभिनेत्री) को महामंडलेश्वर बनाने जा रहा है. उनका नाम श्री यामाई ममता नंदगिरि रखा गया है. जैसा कि मैं यहां बात कर रहा हूं, सभी अनुष्ठान चल रहे हैं. वह किन्नर अखाड़ा और मेरे साथ पिछले डेढ़ साल से संपर्क में हैं. अगर वह चाहें तो उन्हें किसी भी भक्ति पात्र का किरदार निभाने की इजाजत है हम किसी को भी अपनी कला का प्रदर्शन करने से नहीं रोकते हैं,”
*विवाद और आलोचना*
ममता कुलकर्णी के इस कदम पर समाज में विभिन्न प्रतिक्रियाएं आईं
1. आलोचना: कुछ लोगों ने यह सवाल उठाया कि क्या एक पूर्व अभिनेत्री और विवादित व्यक्तित्व को इतनी बड़ी धार्मिक भूमिका दी जानी चाहिए?
2. किन्नर समुदाय की प्रतिक्रिया: कुछ किन्नर नेताओं ने भी इस पर आपत्ति जताई कि एक बाहरी व्यक्ति, जो किन्नर समुदाय से नहीं है, को इस पद पर क्यों नियुक्त किया गया।
*प्रशंसा और समर्थन *
1. समर्थन: कुछ लोगों ने इसे ममता के जीवन के एक सकारात्मक मोड़ के रूप में देखा और कहा कि हर व्यक्ति को अपनी गलतियों से सीखने और एक नई शुरुआत करने का अधिकार है।
2. धर्म और पुनरुत्थान: भारतीय संस्कृति में यह माना जाता है कि व्यक्ति को अपने पापों का प्रायश्चित करने और एक नई शुरुआत करने का मौका मिलना चाहिए। ममता का यह कदम इसी सिद्धांत का उदाहरण हो सकता है।
3. किन्नर समुदाय का सशक्तिकरण: यह कदम किन्नर अखाड़े के लिए चर्चा का विषय बना और संभवतः इसे मुख्यधारा में अधिक पहचान दिलाने में मदद कर सकता है।
ममता कुलकर्णी का किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बनना एक असामान्य और विवादास्पद घटना है, जो आध्यात्मिकता, धर्म, और सामाजिक पहचान के बीच संतुलन बनाने का प्रयास दिखाती है। यह घटना दिखाती है कि व्यक्ति चाहे कितना भी विवादित क्यों न हो, समाज उसे एक नई पहचान और अवसर देने के लिए तैयार है। महामंडलेश्वर बनने का निर्णय केवल व्यक्तिगत योग्यता पर नहीं, बल्कि सामूहिक सहमति और परंपराओं के पालन पर आधारित होता है।