भोजपुर मंदिर : मध्यप्रदेश की राजधानी के समीप एक हज़ार साल पुराना मंदिर पर आज भी है निर्माण अधुरा

भोजपुर मंदिर: रहस्यों को जानने के लिए मनुष्य हमेशा से ही उत्सुक रहा है। मनुष्य में हमेशा से ही कल्पना से परे जिज्ञासा रहती है लेकिन कुछ रहस्य अपने आप में रहस्य ही रह जाते हैं। आज हम आपको एक अधूरी कहानी, एक अधूरे निर्माण के बारे में बताने जा रहे हैं जो भारतीयों के लिए आकर्षण और आस्था का केंद्र बन गया है। ऐसा ही एक रहस्यमयी और अद्भुत निर्माण का नाम है| भोजपुर मंदिर। जिसे उत्तर भारत का सोमनाथ भी कहा जाता है |इस मंदिर का शिवलिंग भारत के मंदिरों में सबसे ऊंचा और सबसे बड़ा शिवलिंग है। इस मंदिर का प्रवेश द्वार भी किसी भी हिंदू भवन के दरवाजों में सबसे बड़ा है। मंदिर के पास ही इस मंदिर को समर्पित एक संग्रहालय भी बना हुआ है। शिवरात्रि के अवसर पर सरकार हर साल यहां भोजपुर उत्सव मेला का आयोजन करती है। यहां साल में दो बार मेले लगते हैं, पहला मेला संक्रांति पर और दूसरा मेला शिवरात्रि पर लगता है। इस भव्य मंदिर में बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ मेले का आनंद लेने के लिए अधिक से अधिक श्रद्धालु यहां आते हैं।

भोजपुर मंदिर की पुराणिक कथा

भोजपुर मंदिर के निर्माण की कथा द्वापर युग से भी जोड़ी जाती है| मान्यता है की पांडवों के वनवास के दौरान माता कुंती ने भगवान शिव की आराधना के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था। उन्होंने एक रात में इस मंदिर को बनाने का संकल्प लिया था। लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया क्योंकि सूर्योदय से पहले इस मंदिर का कार्य पूरा नहीं हो सका इसलिए इस मंदिर का कार्य आज भी अधूरा है।

मंदिर के निर्माण की एतिहासिक कहानी

इतिहास करो के अनुसार मंदिर का निर्माण परमार वंशीय राजा भोजदेव ने 11 बी शताब्दी में करवाया था| राजा भोजदेव बहुत ही प्रतापी और विद्वान राजा थे। उन्हें कला, स्थापत्य और शिक्षा का महान संरक्षक माना जाता है। उन्होंने 11 से अधिक पुस्तकें लिखी थीं। संभवतः इस मंदिर का शिवलिंग उन्हीं के द्वारा बनवाया गया था और यह शिवलिंग एक ही पत्थर से बना है। 

राजधानी से कितनी दूरी पर है मंदिर

भोजेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 32 किलोमीटर दूर भोजपुर नामक गांव में स्थित है। इसी गाव के नाम पे इसका नाम भोजपुर मंदिर पड़ा| यह मंदिर बेतवा नदी की विंध्य पर्वतमाला के बीच एक पहाड़ी पर स्थित है। जो की रायसेन जिले के अंतर्गत आता हे  वेतबा नदी भोजपुर से कुछ दूरी पर कुमरी गाब के निकट सघन वन में वेतबा नदी का उद्गम स्थान हे यह नदी एक कुंड से निकलकर बहती हे भोपाल ताल भोजपुर का ही एक  तालाब हे इसके बांध को मालबा के शासक होशंगशाह [१४०५-१४३४] में अपनी संछिप्त यात्रा में अपनी बेगम की मलेरिया सम्बन्धी शिकायत पर तुडबा डाला था इससे हुई जल्प्लाबन के बीच जो टापू बना बह दुयीप कहा जाने लगा बर्तमान में यहाँ ”मंडीदीप” के नाम से जाना जाता हे यहाँ तक की इसके आस पास आज भी कई खंडित सुन्दर प्रतिमाये बिखरी पड़ी हुई हे|

मंदिर से ही कुछ दूरी पर है  एक और प्राचीन मंदिर

भोजपुर मंदिर से ही कुछ दूरी पर ही एक और जैन मंदिर भी है| मंदिर में भगबान पार्शवनाथ, शांतिनाथ और भगवन सुपर्श्नाथ की भी मूर्ति भी है| सबसे बड़ी मूर्ति भगवन शांतिनाथ की है जो 6 मीटर से भी अधिक ऊँची है| मंदिर में लगे शिलालेखो पर राजा भोज का भोज का नाम अंकित है|    

 

 

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