1984 में भोपाल गैस का कहर आज भी जिंदा है

1984 में भोपाल गैस का कहर आज भी जिंदा है जो आज भी लोगो दिल..
ऐसा क्या हुआ उस दिन जो लोगों के दिलों मे खामोशी और डर के अलावा कुछ था ही नहीं
क्या थी मौत की वजह
गैस त्रासदी ने लोगों के जीवन को हिला कर रख दिया है गैस त्रासदी का कहर, डर आज भी लोगों के दिलों मे जिंदा है जिससे भूल के भी नहीं भुलाया जा सकता है 3 दिसंबर 1984 को पूरा भोपाल शहर नींद के आगोश में था  बहुत ही कड़ाके की ठंड पड़ रही थी दिन के समय तो सब सामान्य चल रहा था तभी इक दम से एक नहीं दो नहीं बल्कि पूरे 16000 लोगो को मौत हुई और शहर के चारों तरफ खामोशी छा गई चारों तरफ अफरा तफरी का माहौल बन चुका था भोपाल जानसन रेलवेस्टेशन से करीब 3 किलोमीटर दूरी पर यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में 3 दिसंबर की रात में कंपनी के एक टैंक से गैस का रिसाव होने लगता है साथ ही साथ कुछ समय बाद बो टैंक फट जाता है और उस टैंक के रिसाव से जहरीली गैस निकलने लगती है तभी कंपनी मे मौजूदा लोग,कर्मचारी,इंजीनियर,सुपरवाइजर  इसे सुधारने में लग जाते है । और कंपनी के आस पास के एरिया मे गैस का प्रवाह हवा के साथ बहुत तेजी से फैलने लगता है उस एरिया में मौजूदा लोग धीरे धीरे उस गैस की चपेट मे आने लगे तथा उसका शिकार होने लगे जिससे उन्हें बहुत  सारी समस्याओं जैसे कि सांस लेने में तकलीफ , आंखों में जलन कई लोगों के मुंह से तो सफेद फसुकर भी निकलने लगा साथ ही साथ कई लोग दम तोड़ने लगे  कई तो गैस की चपेट में बेहोश हो कर जमीन पर गिरने लगे और कई लोगों की तो नीद में ही मौत हो गई
लगभग 40 साल होने पर भी थोड़ा ही सुधार देखा जा सकता। यह गैस जिस जगह को भी छूकर निकली  उसी जगह पर अपना नाम, कहर छोड़ कर गई जिसकी चपेट मे आज भी कई लोग सामना कर रहे है बे लोग कई बीमारियों से जूझ रहे हैं  यह घटना 2,3 दिसंबर 1984 रात के समय भारत मध्य प्रदेश के भोपाल में हुई। यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री मे UCIL (यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड) कीटनाशक दवाई बनाई जाती थी। जिसका कहर आधे से ज्यादा भोपाल पर पड़ा यह दुर्घटना दुनिया की सबसे खरनाक घटना मानी जाती है इस फैक्ट्री मे UCIL का निर्माण 1969 में सेबिन कीटनाशक के उत्पाद में किया गया था जिसके बीच MIC (मिथाइल आइसोसाइनेट) का उपयोग किया गया। इस घटना में कम से कम 3,787 से 16000 से भी अधिक मौतों का दावा करती है। समय के साथ ही धीरे धीरे इसकी चपेट से बाहर निकलने लगे लेकिन आज भी इस दर्दनाक गैस का कहर आज भी लोगों के मानसिक ओर संतुलित स्वास्थ पर प्रभावी बना हुआ है आज भी हमें इस गैस का कहर कहीं न कहीं देखने को मिल ही जाता है आज भी विकलांग और अपाहिज लोग दिखाई देते हैं और कई लोगों को तो फेफड़ों की खतरनाक बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है यहां तक कि वो बच्चे भी इस कहर से नहीं बच पाए है जो अपनी माँ के गर्भ  में थे उन शिशुओं ने गर्भ में ही अपना दम तोड़ दिया। आज करीबन 1,50,000 लोग इस गैस की चपेट में जिंदा है लेकिन उनका जीवन मौत से भी बत्तर बन चुका है इस घटना का मुख्य किरदार वॉरेन एंडरसन थे जिसने इस कांट को अंजाम दिया ऐसा कहा जाता है कि वॉरेन एंडरसन भोपाल से दिल्ली ओर दिल्ली से अमेरिका की ओर रवाना हुए और उन्हें कोर्ट ने फरवरी 1992 में भगोड़ा घोषित कर दिया फिर वह अमेरिका से भोपाल कभी लौटे ही नहीं थे नहीं।ओर  कुछ समय बाद फॉरेन गए। 19 सितंबर 2014 में वॉरेन एंडरसन की फॉरेन के एक नर्सिंगहॉम में इनकी बड़ी ही दर्दनाक मौत हो



गैस का प्रवाह किस प्रकार

. इसने कास्टिक सोडा और बिजली नहीं थी
. 45 से 60 मिनट में टैंक से लगभग 30 टन MIC वायुमंडल में निकल गया
. जोखिम में शुरुआती प्रभाव – खासी, आंखों में जलन, घुटन की भावना, श्वसन पथ में जलन, सांस फूलना, पेट में दर्द

अब जहरीला कचरा कैसे लगाया जाएगा ठिकाने
भोपाल को अब कई सालों बाद पहला मौका मिला है ऐसा क्या हुआ कि 40 साल बाद हुआ भोपाल का मन हल्का। 29 दिसंबर दिन रविवार को यूनियन कार्बाइड परिसर में शुरू हुआ रासायनिक कचड़े की पैकेजिंग का काम बुधवार दोपहर तक पूरा हो सका। दोपहर करीबन 3:45 तक सभी 12 कंटेनर में 337 में कचड़े को पैक किया जा चुका था। 6:00 बजे तक इन कंटेनर को सीपीसीबी की गार्डलाइन के अनुसार पेक कर दिया गया। करीबन रात 9:00 बजे पूरी सुरक्षा व्यवस्था के साथ डेढ़ किलोमीटर 25 वाहनों के काफिले के साथ निकाले गए कंटेनर। साथ ही इसकी सुरक्षा के साथ एंबुलेंस और फायर बिग्रेड को भी शामिल किया गया। ओर भोपाल से पीतमपुर की ओर रवाना किया। युका परिसर में जिस स्थान पर यह कचड़ा रखा हुआ था उसे वैक्यूम क्लीनर से पूरी जगह को साफ किया गया। इसका पूरा कम सीपीसीबी और के वैज्ञानिकों की देख भाल में किया। बैज्ञानिकों के अनुसार यह कचड़ा इतना खतरनाक था कि इसके साथ उस मिट्टी को भी समेटा गया जिस जगह पर इसे रखा गया था। जैसा कि इक्कठा रखा हुआ कचड़ा पेस्टीसाइड होता है। लेकिन पेस्टीसाइड की उम्र 25 से 30 साल होती है परंतु यह अब 40 साल पुराना हो चुका है। इसका कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता कि यह कचड़ा कितना जहरीला होगा।
अब बड़ा सवाल….
युका परिसर में ओर भी 21 जगहों पर दफन है जहरीला कचड़ा उसका क्या..
हाई कोर्ट के निर्देश पर मध्य प्रदेश सरकार ने सन् 2010 में नेशनल इन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट नागपुर ओर नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट हैदराबाद ने जहरीले कचड़े और उस मिट्टी,भूजल प्रदूषण की जांच कराई थी। सामने आया कि युका परिसर में 21 जगह जहरीला कचड़ा दफन है
सालों की लंबी लड़ाई।
– साल 2004 में  भोपाल निवासी आलोक प्रताप सिंह ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका लगा के यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में पड़े जहरीले कचरे के निवारण की मांग की।
– मार्च 2005 में में उच्च न्यायलय ने एक टास्क फोर्क का गठन किया। जिसे कचरे के सुरक्षित निपटान करने के लिए सिफारिश देने थी।
– अप्रैल 2005 में केंद्रीय रसायन और फेट्रोकेमिकल मंत्रालय ने एक आवेदन दायर कर हाईकोर्ट से अपील की कि जहरीला कचड़ा खर्च हटाने के आने बाला पूरा खर्च इसके लिए उत्तरदायी कंपनी डाउ केमिकल्स यूसीआईएल से बसूला जाए।
– जून 2005 उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार गैस राहत विभाग ने कचड़े को पैक करने के लिए रामकी एनवायरो फॉर्म लिमिटेड को नियुक्त किया
– अक्टूबर 2006 हाईकोर्ट ने 346 मीट्रिक टन जहरीले कचड़े को अंकलेश्वर गुजरात भेजने का आदेश दिया। नवंबर 2006 में हाईकोर्ट ने पीतमपुर में टीएसडीफ सुविधा के लिए 39 मीट्रिक टन चुना कीचड़ के परिवहन का आदेश दिया।
– अक्टूबर 2007 गुजरात सरकार ने भारत सरकार को पत्र लिखकर यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचड़ा अंकलेश्वर स्थित भरूच अंबायरमेंटल इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड में जलाने में असमर्थता व्यक्त की।
– अक्टूबर 2009 टास्क फोर्सकी 18वी बैठक में पीतमपुर में 346 मीट्रिक टन जहरीले कचड़े को भेजने का निर्णय लिया गया। यह कम अगले ही महीने यानी नवंबर में शुरू हो गया क्योंकि अंकलेश्वर में कचड़ा भेजना असंभव लग रहा था।
– अक्टूबर 2012 मंत्रियों के समूह ने ट्रायल के तौर पर 10 मीट्रिक टन जहरीले कचड़े को पीतमपुर में टीएसडीफ सुविधा में जलाने का निर्णय लिया अप्रैल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पीतमपुर में 10 टन कचड़ा खत्म करने की योजना बनाई।
– दिसंबर 2015 सुप्रीम कोर्ट ने 337 मीट्रिक टन जहरीले कचड़े को पीतमपुर संयंत्र में निपटने का निर्देश दिया। इसके बाद अप्रैल 2021 में मध्य प्रदेश सरकार ने इस कचड़े को निपटान के लिए निविदाएं आमंत्रित की। नवंबर 2021 में रामकी को टेंडर दे दिया गया।
– दिसंबर 2024 में हाईकोर्ट ने जहरीले कचड़े के निपटान में हो रही देरी पर फटकार लगाते हुए कहा कि एक महीने के भीतर युका से हटाया जाए।

 

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