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कार्यस्थल पर मानसिक उत्पीड़न एक अदृश्य यातना

कार्यस्थल मानसिक उत्पीड़न , एक अदृश्य यातना , सूक्ष्म और सतत व्यवहार

कार्यस्थल मानसिक उत्पीड़न , एक अदृश्य यातना , सूक्ष्म और सतत व्यवहार

कार्यस्थल पर मानसिक उत्पीड़न: एक अदृश्य यातना जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता

कार्यस्थल हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यहाँ हम न केवल अपनी रोज़ी-रोटी कमाते हैं, बल्कि अपने सपनों को साकार करने की दिशा में काम करते हैं। लेकिन जब यही कार्यस्थल एक ऐसा स्थान बन जाए जहाँ व्यक्ति को प्रतिदिन मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़े, तो यह धीरे-धीरे एक ऐसी  अदृश्य यातना  में बदल जाता है जो न केवल उसकी कार्यक्षमता को नष्ट करती है, बल्कि उसके आत्मविश्वास, मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक जीवन को भी बुरी तरह प्रभावित करती है।

मानसिक उत्पीड़न क्या है?

मानसिक उत्पीड़न का अर्थ केवल गाली देना या ज़ोर से चिल्लाना नहीं होता। यह एक ऐसा  सूक्ष्म और सतत व्यवहार है जो किसी व्यक्ति की मनोस्थिति को कमजोर करता है। इसमें शामिल हो सकते हैं:

यह उत्पीड़न इतना धीमा और छुपा होता है कि कई बार व्यक्ति खुद यह समझ नहीं पाता कि उसके साथ कुछ गलत हो रहा है।

मानसिक उत्पीड़न के प्रकार

  1. प्रबंधकों/बॉस द्वारा उत्पीड़न
  1. सहकर्मियों द्वारा उत्पीड़न
  1. प्रणालीगत उत्पीड़न (Organizational/Systemic)

इसके प्रभाव

  1. मानसिक स्वास्थ्य पर असर
  1. कार्य की गुणवत्ता में गिरावट
  1. व्यक्तिगत जीवन पर प्रभाव

कानूनी प्रावधान और समाधान

भारत में मानसिक उत्पीड़न से जुड़े कुछ कानूनी प्रावधान मौजूद हैं, विशेषकर महिलाओं के लिए:

  1. कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013
  1. भारत का श्रम कानून
  1. मानवाधिकार आयोग और श्रम अदालतें

👉 हालांकि, मानसिक उत्पीड़न के लिए एक स्पष्ट और अलग कानून की आवश्यकता अभी भी बनी हुई है।

इससे निपटने के उपाय

  1. स्वयं को शिक्षित करें
  1. डॉक्युमेंटेशन रखें
  1. भीतर ही भीतर न झेलें
  1. प्रभावी संवाद करें
  1. आवश्यक हो तो बाहर निकलें

प्रेरणादायक अंत: आशा की किरण

हर कार्यस्थल में चुनौतियाँ होती हैं, लेकिन जब ये चुनौतियाँ व्यक्ति के आत्मसम्मान और मानसिक शांति पर हमला करने लगें, तो यह सहना नहीं, बल्कि बोलना आवश्यक हो जाता है। यह लड़ाई सिर्फ आपके लिए नहीं है, बल्कि उन सभी लोगों के लिए भी है जो चुपचाप इस अदृश्य यातना को झेल रहे हैं।

ध्यान रखें, आपका मानसिक स्वास्थ्य आपकी सबसे बड़ी पूंजी है। कोई नौकरी, कोई बॉस, कोई सहकर्मी इतना महत्वपूर्ण नहीं कि उसके कारण आपकी आत्मा थक जाए। खुद पर विश्वास रखें, और जब भी ज़रूरत हो, आवाज़ उठाइए।

अध्याय 7: कार्यस्थल उत्पीड़न की वास्तविक घटनाएँ (केस स्टडी)

मामला 1: आईटी क्षेत्र की एक महिला कर्मचारी की कहानी

राधिका एक प्रतिष्ठित आईटी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी। शुरुआत में सब कुछ ठीक चला, लेकिन कुछ महीनों बाद उसके प्रोजेक्ट मैनेजर ने उसे बार-बार अतिरिक्त कार्य देना शुरू किया, वो भी बिना किसी मान्यता या सहयोग के। जब राधिका ने विरोध किया, तो उसे “टीम में फिट न होने वाली” करार दिया गया। उसके सहकर्मी भी उससे कटने लगे।

हालांकि उसने HR से शिकायत की, लेकिन HR ने बात को दबा दिया क्योंकि वह मैनेजर कंपनी के पुराने और प्रभावशाली कर्मचारियों में से था। मानसिक दबाव में राधिका ने नौकरी छोड़ दी और डिप्रेशन में चली गई। लेकिन उसने हार नहीं मानी — आज वह एक स्टार्टअप चला रही है जो कार्यस्थल में लैंगिक समानता पर काम करता है।

👉 सीख: कभी-कभी सिस्टम हमें न्याय नहीं देता, पर हमारी आवाज़ दूसरों के लिए रोशनी बन सकती है।

अध्याय 8: विभिन्न क्षेत्रों में उत्पीड़न के रूप

  1. शिक्षा क्षेत्र
  1. कॉर्पोरेट क्षेत्र
  1. मेडिकल प्रोफेशन
  1. फैक्ट्री/मैन्युफैक्चरिंग

अध्याय 9: अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण – अन्य देशों में कानून और प्रावधान

फ्रांस

जापान

स्वीडन

👉 भारत में भी ऐसी सख्ती की ज़रूरत है, जहाँ मानसिक उत्पीड़न को सिर्फ “बुरा बर्ताव” मानकर टाल दिया जाता है।

अध्याय 10: मनोवैज्ञानिक विश्लेषण – दमनकारी माहौल में मनुष्य की प्रतिक्रिया

जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक मानसिक उत्पीड़न झेलता है, तो उसका मस्तिष्क “फाइट, फ्लाइट या फ्रीज़” मोड में चला जाता है। यह स्थिति उसे निर्णय लेने, बोलने और विरोध करने से भी रोक सकती है। वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि:

👉 इसलिए मानसिक उत्पीड़न को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए — यह एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है।

अध्याय 11: प्रबंधन की भूमिका – सुरक्षित कार्यसंस्कृति कैसे बनाएं?

  1. नेतृत्व में संवेदनशीलता होनी चाहिए
  1. फीडबैक सिस्टम पारदर्शी हो
  1. एनोनिमस रिपोर्टिंग सिस्टम
  1. कार्यस्थल पर काउंसलर की सुविधा

अध्याय 12: जागरूकता और शिक्षा – बदलाव की दिशा में पहला कदम

बदलाव तभी संभव है जब हम लोग अपने अधिकार, अपनी सीमाएँ और अपनी गरिमा के लिए खड़े हों। स्कूलों और कॉलेजों में ही “कार्यस्थल व्यवहार” और “मानसिक स्वास्थ्य” को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।

नारे जैसे – “काम का बोझ सहें, पर अपमान नहीं” या “मानसिक उत्पीड़न, मौन नहीं प्रतिकार चाहिए” – जागरूकता बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।

अध्याय 13: वास्तविक समय में सामना कैसे करें (Coping in Real Time)

जब आप कार्यस्थल पर मानसिक उत्पीड़न का अनुभव कर रहे होते हैं, तो उस क्षण क्या करें, यह जानना बहुत ज़रूरी होता है। कुछ व्यावहारिक उपाय:

  1. प्रतिक्रिया से पहले रुकें
  1. “I” स्टेटमेंट का प्रयोग करें
  1. बॉडी लैंग्वेज मजबूत रखें

अध्याय 14: ध्यान, योग और माइंडफुलनेस का योगदान

मानसिक उत्पीड़न का असर सीधे हमारे नर्वस सिस्टम पर होता है। ऐसे में मनोवैज्ञानिक और पारंपरिक उपायों का मेल एक उपयोगी हथियार बन सकता है।

  1. ध्यान (Meditation)
  1. प्राणायाम और योग
  1. Journaling (डायरी लेखन)

अध्याय 15: मानव संसाधन (HR) की भूमिका और उसकी सीमाएँ

HR की ज़िम्मेदारियाँ

लेकिन वास्तविकता?

👉 इसलिए केवल HR पर निर्भर न रहें। जब आवश्यक हो, तो बाहरी एजेंसियों, वकीलों या मीडिया से संपर्क करें।

अध्याय 16: डेटा और सर्वे – कितने लोग झेल रहे हैं यह यातना?

2023 में एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण (LinkedIn + WHO सहयोग से) के अनुसार:

👉 डर, करियर खोने का भय और समाज का रवैया लोगों को चुप करवा देता है।

अध्याय 17: कार्यस्थल में एक नया युग – आदर्श मॉडल

कुछ प्रगतिशील कंपनियों ने मानसिक उत्पीड़न के खिलाफ सराहनीय कदम उठाए हैं:

  1. माइक्रोसॉफ्ट
  1. टाटा समूह
  1. छोटी स्टार्टअप कंपनियाँ

👉 इन मॉडलों को अपनाना बाकी कंपनियों के लिए जरूरी है।

अध्याय 18: सामाजिक आंदोलन और भविष्य की दिशा

मानसिक उत्पीड़न को रोकने के लिए यह जरूरी है कि यह सिर्फ व्यक्ति की लड़ाई न रहे, बल्कि एक सामूहिक जनआंदोलन बने।

क्या होना चाहिए:

👉 जैसे यौन उत्पीड़न के खिलाफ “MeToo” आंदोलन ने जागरूकता फैलाई, वैसे ही मानसिक उत्पीड़न के खिलाफ भी “MindToo” जैसी मुहिम की ज़रूरत है।

 

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