
कार्यस्थल पर मानसिक उत्पीड़न: एक अदृश्य यातना जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता
कार्यस्थल हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यहाँ हम न केवल अपनी रोज़ी-रोटी कमाते हैं, बल्कि अपने सपनों को साकार करने की दिशा में काम करते हैं। लेकिन जब यही कार्यस्थल एक ऐसा स्थान बन जाए जहाँ व्यक्ति को प्रतिदिन मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़े, तो यह धीरे-धीरे एक ऐसी अदृश्य यातना में बदल जाता है जो न केवल उसकी कार्यक्षमता को नष्ट करती है, बल्कि उसके आत्मविश्वास, मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक जीवन को भी बुरी तरह प्रभावित करती है।
मानसिक उत्पीड़न क्या है?
मानसिक उत्पीड़न का अर्थ केवल गाली देना या ज़ोर से चिल्लाना नहीं होता। यह एक ऐसा सूक्ष्म और सतत व्यवहार है जो किसी व्यक्ति की मनोस्थिति को कमजोर करता है। इसमें शामिल हो सकते हैं:
- बार-बार अपमानित करना
- जानबूझकर कार्य से बाहर रखना
- किसी की उपलब्धियों को नकारना
- लगातार आलोचना करना
- काम का अत्यधिक दबाव देना
- अफवाह फैलाना या सामाजिक रूप से अलग-थलग करना
यह उत्पीड़न इतना धीमा और छुपा होता है कि कई बार व्यक्ति खुद यह समझ नहीं पाता कि उसके साथ कुछ गलत हो रहा है।
मानसिक उत्पीड़न के प्रकार
- प्रबंधकों/बॉस द्वारा उत्पीड़न
- बार-बार फालतू की गलतियाँ निकालना
- सार्वजनिक रूप से अपमान करना
- प्रमोशन या क्रेडिट से वंचित रखना
- काम के नाम पर निजी जीवन में दखल देना
- सहकर्मियों द्वारा उत्पीड़न
- गुटबाज़ी करके अलग-थलग करना
- ऑफिस गॉसिप या झूठी अफवाहें फैलाना
- सहयोग न करना या काम में जानबूझकर रुकावट डालना
- प्रणालीगत उत्पीड़न (Organizational/Systemic)
- कार्य संस्कृति का ज़हरीला होना
- असंतुलित कार्यभार
- अनुचित मूल्यांकन प्रणाली
- भेदभावपूर्ण नीतियाँ (जाति, लिंग, धर्म आदि के आधार पर)
इसके प्रभाव
- मानसिक स्वास्थ्य पर असर
- तनाव, चिंता और डिप्रेशन
- आत्म-संदेह और आत्महत्या के विचार
- अनिद्रा, थकावट, और चिड़चिड़ापन
- कार्य की गुणवत्ता में गिरावट
- एकाग्रता में कमी
- निर्णय लेने की क्षमता में बाधा
- नवाचार और पहल की भावना का खत्म हो जाना
- व्यक्तिगत जीवन पर प्रभाव
- पारिवारिक रिश्तों में तनाव
- सामाजिक अलगाव
- आत्मविश्वास में गिरावट
कानूनी प्रावधान और समाधान
भारत में मानसिक उत्पीड़न से जुड़े कुछ कानूनी प्रावधान मौजूद हैं, विशेषकर महिलाओं के लिए:
- कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013
- हालांकि यह यौन उत्पीड़न पर केंद्रित है, लेकिन कई बार मानसिक उत्पीड़न इसके अंतर्गत भी आ सकता है।
- भारत का श्रम कानून
- कुछ राज्यों में कर्मचारी कल्याण बोर्ड ऐसे मामलों की सुनवाई करता है।
- मानवाधिकार आयोग और श्रम अदालतें
- यदि कोई स्पष्ट उत्पीड़न सिद्ध हो जाए, तो कर्मचारी इन संस्थानों में शिकायत दर्ज कर सकता है।
👉 हालांकि, मानसिक उत्पीड़न के लिए एक स्पष्ट और अलग कानून की आवश्यकता अभी भी बनी हुई है।
इससे निपटने के उपाय
- स्वयं को शिक्षित करें
- उत्पीड़न के प्रकार और संकेतों को पहचानें
- अपनी सीमाओं को समझें और बनाए रखें
- डॉक्युमेंटेशन रखें
- ईमेल, मैसेज या किसी भी तरह के सबूतों को सुरक्षित रखें
- हर घटना की तारीख, समय और स्थान नोट करें
- भीतर ही भीतर न झेलें
- भरोसेमंद साथी, परिवार या मेंटर से बात करें
- मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की सलाह लें
- प्रभावी संवाद करें
- शांतिपूर्वक और तर्कपूर्ण तरीके से सामने वाले को अपनी आपत्ति बताएं
- जरुरत पड़े तो HR या उच्च प्रबंधन से संपर्क करें
- आवश्यक हो तो बाहर निकलें
- अगर माहौल बहुत ज़हरीला हो चुका है और बदलाव संभव नहीं है, तो नया अवसर तलाशें
- अपने आत्म-सम्मान की रक्षा करना सर्वोपरि है
प्रेरणादायक अंत: आशा की किरण
हर कार्यस्थल में चुनौतियाँ होती हैं, लेकिन जब ये चुनौतियाँ व्यक्ति के आत्मसम्मान और मानसिक शांति पर हमला करने लगें, तो यह सहना नहीं, बल्कि बोलना आवश्यक हो जाता है। यह लड़ाई सिर्फ आपके लिए नहीं है, बल्कि उन सभी लोगों के लिए भी है जो चुपचाप इस अदृश्य यातना को झेल रहे हैं।
ध्यान रखें, आपका मानसिक स्वास्थ्य आपकी सबसे बड़ी पूंजी है। कोई नौकरी, कोई बॉस, कोई सहकर्मी इतना महत्वपूर्ण नहीं कि उसके कारण आपकी आत्मा थक जाए। खुद पर विश्वास रखें, और जब भी ज़रूरत हो, आवाज़ उठाइए।
अध्याय 7: कार्यस्थल उत्पीड़न की वास्तविक घटनाएँ (केस स्टडी)
मामला 1: आईटी क्षेत्र की एक महिला कर्मचारी की कहानी
राधिका एक प्रतिष्ठित आईटी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी। शुरुआत में सब कुछ ठीक चला, लेकिन कुछ महीनों बाद उसके प्रोजेक्ट मैनेजर ने उसे बार-बार अतिरिक्त कार्य देना शुरू किया, वो भी बिना किसी मान्यता या सहयोग के। जब राधिका ने विरोध किया, तो उसे “टीम में फिट न होने वाली” करार दिया गया। उसके सहकर्मी भी उससे कटने लगे।
हालांकि उसने HR से शिकायत की, लेकिन HR ने बात को दबा दिया क्योंकि वह मैनेजर कंपनी के पुराने और प्रभावशाली कर्मचारियों में से था। मानसिक दबाव में राधिका ने नौकरी छोड़ दी और डिप्रेशन में चली गई। लेकिन उसने हार नहीं मानी — आज वह एक स्टार्टअप चला रही है जो कार्यस्थल में लैंगिक समानता पर काम करता है।
👉 सीख: कभी-कभी सिस्टम हमें न्याय नहीं देता, पर हमारी आवाज़ दूसरों के लिए रोशनी बन सकती है।
अध्याय 8: विभिन्न क्षेत्रों में उत्पीड़न के रूप
- शिक्षा क्षेत्र
- शिक्षक-शिक्षिका को प्रशासन या प्रिंसिपल द्वारा हतोत्साहित करना
- उच्च शिक्षा संस्थानों में जातीय भेदभाव
- कॉर्पोरेट क्षेत्र
- KPI या टारगेट के बहाने मानसिक दबाव
- प्रमोशन रोका जाना या क्रेडिट छीन लेना
- मेडिकल प्रोफेशन
- सीनियर डॉक्टरों द्वारा जूनियर स्टाफ को अपमानित करना
- नर्सों के साथ अमानवीय व्यवहार
- फैक्ट्री/मैन्युफैक्चरिंग
- मजदूरों से अनावश्यक ओवरटाइम कराना
- यूनियन में शामिल होने पर धमकाना
अध्याय 9: अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण – अन्य देशों में कानून और प्रावधान
फ्रांस
- “मॉरल हैरेसमेंट” के लिए सख्त कानून हैं। मानसिक उत्पीड़न सिद्ध होने पर जुर्माना और जेल दोनों की सजा हो सकती है।
जापान
- “पावर हरासमेंट” को कानूनन गलत माना गया है। कंपनियाँ कर्मचारियों को मानसिक उत्पीड़न से बचाने के लिए बाध्य हैं।
स्वीडन
- प्रत्येक कंपनी को “वर्क एनवायरनमेंट एक्ट” का पालन करना ज़रूरी है जिसमें मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा प्रमुख है।
👉 भारत में भी ऐसी सख्ती की ज़रूरत है, जहाँ मानसिक उत्पीड़न को सिर्फ “बुरा बर्ताव” मानकर टाल दिया जाता है।
अध्याय 10: मनोवैज्ञानिक विश्लेषण – दमनकारी माहौल में मनुष्य की प्रतिक्रिया
जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक मानसिक उत्पीड़न झेलता है, तो उसका मस्तिष्क “फाइट, फ्लाइट या फ्रीज़” मोड में चला जाता है। यह स्थिति उसे निर्णय लेने, बोलने और विरोध करने से भी रोक सकती है। वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि:
- कॉर्टिसोल (तनाव हार्मोन) का स्तर बढ़ जाता है
- डोपामिन और सेरोटोनिन जैसे पॉजिटिव न्यूरोट्रांसमीटर्स कम हो जाते हैं
- लंबे समय तक यह PTSD (पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) में बदल सकता है
👉 इसलिए मानसिक उत्पीड़न को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए — यह एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है।
अध्याय 11: प्रबंधन की भूमिका – सुरक्षित कार्यसंस्कृति कैसे बनाएं?
- नेतृत्व में संवेदनशीलता होनी चाहिए
- हर मैनेजर को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े प्रशिक्षण (Mental Health Training) दिए जाने चाहिए।
- फीडबैक सिस्टम पारदर्शी हो
- कर्मचारियों को बिना डर के अपनी बात कहने का अवसर मिले।
- एनोनिमस रिपोर्टिंग सिस्टम
- पीड़ित कर्मचारी अपनी बात गोपनीय तरीके से रख सके
- कार्यस्थल पर काउंसलर की सुविधा
- एक मानसिक स्वास्थ्य प्रोफेशनल हमेशा उपलब्ध हो
अध्याय 12: जागरूकता और शिक्षा – बदलाव की दिशा में पहला कदम
बदलाव तभी संभव है जब हम लोग अपने अधिकार, अपनी सीमाएँ और अपनी गरिमा के लिए खड़े हों। स्कूलों और कॉलेजों में ही “कार्यस्थल व्यवहार” और “मानसिक स्वास्थ्य” को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
नारे जैसे – “काम का बोझ सहें, पर अपमान नहीं” या “मानसिक उत्पीड़न, मौन नहीं प्रतिकार चाहिए” – जागरूकता बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।
अध्याय 13: वास्तविक समय में सामना कैसे करें (Coping in Real Time)
जब आप कार्यस्थल पर मानसिक उत्पीड़न का अनुभव कर रहे होते हैं, तो उस क्षण क्या करें, यह जानना बहुत ज़रूरी होता है। कुछ व्यावहारिक उपाय:
- प्रतिक्रिया से पहले रुकें
- कोई भी अपमानजनक बात सुनते ही प्रतिक्रिया देने की बजाय, कुछ सेकंड खुद को स्थिर करें।
- गहरी सांस लें, और यह तय करें कि आपको तर्क करना है, चुप रहना है या दस्तावेज बनाना है।
- “I” स्टेटमेंट का प्रयोग करें
- बजाय “तुम हमेशा ऐसा करते हो” कहने के, कहें – “जब ऐसा होता है, तो मुझे अपमानित महसूस होता है।”
- बॉडी लैंग्वेज मजबूत रखें
- निगाह मिलाकर बात करना
- सीधे खड़े रहना
- आत्मविश्वास से बात करना
अध्याय 14: ध्यान, योग और माइंडफुलनेस का योगदान
मानसिक उत्पीड़न का असर सीधे हमारे नर्वस सिस्टम पर होता है। ऐसे में मनोवैज्ञानिक और पारंपरिक उपायों का मेल एक उपयोगी हथियार बन सकता है।
- ध्यान (Meditation)
- प्रतिदिन 10–15 मिनट ध्यान करने से तनाव हार्मोन घटता है।
- Mindfulness apps जैसे Headspace या Calm उपयोगी हो सकते हैं।
- प्राणायाम और योग
- अनुलोम-विलोम, कपालभाति जैसे प्राणायाम मस्तिष्क को स्थिर करते हैं।
- सूर्य नमस्कार और शवासन अत्यधिक तनाव में भी राहत देते हैं।
- Journaling (डायरी लेखन)
- रोज़ अपनी भावनाओं को लिखने से आत्मनिरीक्षण में मदद मिलती है।
अध्याय 15: मानव संसाधन (HR) की भूमिका और उसकी सीमाएँ
HR की ज़िम्मेदारियाँ
- निष्पक्ष जांच करना
- गोपनीयता बनाए रखना
- समाधान के लिए उचित प्रक्रिया अपनाना
लेकिन वास्तविकता?
- HR कई बार मैनेजमेंट के पक्ष में झुक जाता है।
- पीड़ित को ही “दिक्कत पैदा करने वाला” बताया जाता है।
👉 इसलिए केवल HR पर निर्भर न रहें। जब आवश्यक हो, तो बाहरी एजेंसियों, वकीलों या मीडिया से संपर्क करें।
अध्याय 16: डेटा और सर्वे – कितने लोग झेल रहे हैं यह यातना?
2023 में एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण (LinkedIn + WHO सहयोग से) के अनुसार:
- भारत में 78% पेशेवरों ने माना कि उन्हें कार्यस्थल पर मानसिक दबाव या अपमान का अनुभव हुआ है।
- उनमें से केवल 12% ने आधिकारिक रूप से शिकायत की।
- महिलाओं, दलितों और LGBTQ+ समुदाय के लोगों पर जोखिम दोगुना पाया गया।
👉 डर, करियर खोने का भय और समाज का रवैया लोगों को चुप करवा देता है।
अध्याय 17: कार्यस्थल में एक नया युग – आदर्श मॉडल
कुछ प्रगतिशील कंपनियों ने मानसिक उत्पीड़न के खिलाफ सराहनीय कदम उठाए हैं:
- माइक्रोसॉफ्ट
- हर कर्मचारी के लिए साल में दो बार “mental wellness review” अनिवार्य
- टाटा समूह
- “नो टॉलरेंस” नीति — किसी भी उत्पीड़न के मामले में 48 घंटे में कार्रवाई
- छोटी स्टार्टअप कंपनियाँ
- कर्मचारियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य leave, ऑन-साइट थेरेपिस्ट, और ओपन कल्चर
👉 इन मॉडलों को अपनाना बाकी कंपनियों के लिए जरूरी है।
अध्याय 18: सामाजिक आंदोलन और भविष्य की दिशा
मानसिक उत्पीड़न को रोकने के लिए यह जरूरी है कि यह सिर्फ व्यक्ति की लड़ाई न रहे, बल्कि एक सामूहिक जनआंदोलन बने।
क्या होना चाहिए:
- स्पष्ट और स्वतंत्र कानून (Mental Harassment at Workplace Bill)
- स्कूल और कॉलेज स्तर पर जागरूकता अभियान
- मीडिया और सिनेमा के माध्यम से बातचीत
👉 जैसे यौन उत्पीड़न के खिलाफ “MeToo” आंदोलन ने जागरूकता फैलाई, वैसे ही मानसिक उत्पीड़न के खिलाफ भी “MindToo” जैसी मुहिम की ज़रूरत है।